‘समय सीमा नहीं, लेकिन किसी भी बिल को रोक नहीं सकते राज्यपाल’, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्यपाल या राष्ट्रपति के लिए बिल पर कार्रवाई करने की कोई समय-सीमा तय नहीं की जा सकती। अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल बिल को अनिश्चितकाल तक रोककर नहीं रख सकते, बल्कि उसे विधानमंडल को वापस भेजना होगा। यह फैसला सहयोगी संघवाद की भावना को बनाए रखने पर जोर देता है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपाल की बिल मंजूरी की समय सीमा तय करने वाले मामले पर अपना फैसला सुना दिया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गवर्नरों के पास विधानसभा से पारित विधेयकों पर रोक लगाने का अधिकार नहीं है।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी राज्य के गवर्नर के पास केवल तीन विकल्प हैं। किसी भी बिल को गवर्नर या तो मंजूरी दे या दोबारा विचार के लिए भेजना होगा या फिर उन्होंने राष्ट्रपति के पास भेजना होगा।

‘राज्यपाल के लिए तय नहीं कर सकते समय सीमा’

बिलों की मंजूरी से जुड़े मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधेयकों की मंजूरी के लिए कोई समय सीमा नहीं तय कर सकता है। हालांकि, अगर इसमें अधिक देरी होती है तो कोर्ट दखल दे सकता है।
दरअसल, यह पूरा मामला तमिलनाडु राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच हुए विवाद के बीच उठा था। यहां पर राज्यपाल ने राज्य सरकार के बिल को रोक रखे थे। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 8 अप्रैल को आदेश दिया कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है।
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को तीन महीने के अंदर फैसला लेना होगा। यह आदेश 11 अप्रैल को सामने आया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर राष्ट्रपति ने चिंता जताई थी और सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी और 14 सवाल पूछे थे।
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल किसी बिल को मंजूरी देने के लिए उसे अनिश्चितकाल तक के लिए लंबित नहीं रख सकते हैं। वहीं, कोर्ट ने साफ किया कि उन पर समयसीमा तय करना शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।

‘राज्यपाल का बिलों को रोकना संघवाद का उल्लंघन’

फैसला सुनाते हुए पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि राज्यपाल के विवेकाधिकार की संवैधानिक सीमाओं को रेखांकित करते हुए कहा कि बिलों को एकतरफा तरीके से रोकना संघवाद का उल्लंघन होगा।

पांच जजों की बेंच ने कहा कि अगर राज्यपाल अनुच्छेद 200 में तय प्रक्रिया का पालन किए बिना विधानसभा की ओर से पारित बिलों को रोक लेते हैं, तो यह संघीय ढांचे के हितों के खिलाफ होगा।

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